एक दिन यूँ ही टहलते हुए, हम घर से थोङा दूर आ गये| कहीं एक कोने में बारिश का पानी इकट्ठा हो गया था| वहीं कुछ मच्छरों ने अपनी चौपाल सजा रखी थी| जाने हमें भी क्या सूझी, हम वहीं खङे होकर उनका वार्तालाप सुनने लगे| (ये विचित्र विधा हमने कैसे सीखी ये फिर कभी फुर्सत में बताएंगे)| फिलहाल इस वार्तालाप की गम्भीरता को समझिये|
इस वार्तालाप को सुनने के बाद ही हमें पता चला कि हमारे राष्ट्रीय समाचार चैनलों पर परोसे जाने वाले चटपटे व्यंजनों का रसास्वादन ये तुच्छ मगर अति कष्टदायी प्राणी भी करता है|
एक नुकीली मूँछ वाले सुडौल मच्छर का स्वर हमार कानों से टकराया- ” हम जिन शर्मा जी के यहां आज कल डेरा जमाये हुए हैं, उनके केबल आपरेटर ने उन्हें अपनी सेवाएँ देना बंद कर दिया है| अब बिना अबतक और सीन्यूज़ की खबरों के हमारा जी वहाँ नहीं लगता है| अब सोच रहे हैं कि मुनिसिपल कार्पोरेशन के बाजू वाली गली के गुप्ताजी के यहाँ पलायन कर लिया जाए| वहाँ की सङक पर काफी पानी रहता है, इससे मुझे बहुत आराम होगा|अरे भैया, तुम्ही बताओ कि कल के विशेष बुलेटिन में क्या मसाला था|”
इस पर एक छोटा मच्छर इठलाते हुए बोला ,” अरे भाई कल एक अण्डवर्ल्ड डान की पूर्व प्रेमिका का इन्टरव्यू आया था| उनके सम्बन्धों का नाटकीय रूपान्तरण काफी मसालेदार था|”
इतने में एक थोङी ज्यादा खाई-पी हुई मच्छरनी बोली – “कुछ बजट के बारे में भी तो बताओ, कल ही तो संसद से बिल पास होना था|
इस पर छोटे मच्छर का जवाब था “अरे भाई जब मेन न्यूज शुरू हुई तो बण्टी ने टीवी का चैनल बदल कर टोपी वाले रेशमिया का लाइव स्टेज शो लगा दिया था, इसलिये बजट के बारे में ना मुझे पता है ना बण्टी को| लेकिन डान की प्रेमिका के बारे में तुम हुम दोनो से ही सब कुछ पूछ सकती हो, वो कौनसी गाङी चलाती है, कौन-सी लिप्स्टिक लगाती है, मुझे सब पता है|”
इतने में एक मच्छर महाशय ने हमें हमारी गुस्ताखी की सज़ा हमें अपने तीव्र दंश से दे ही दी| और हम अपनी बाँह खुजाते हुए वहाँ से सरक लिये| चलिये हमारी ये मच्छर गाथा तो यहीं समाप्त होती है, लेकिन न्यूज चैनलों द्वारा न्यूज के नाम पर छले जाने की कहानी आज आप देख सकते हैं सीन्यूज पर रात ८ बजे ,तब तक के लिये नमस्कार!